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MYSTICAL | ENERGIZED | SACRED

श्री महामृत्युंजय यंत्र (पॉकेट साइज़)

श्री महामृत्युंजय यंत्र (पॉकेट साइज़)

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श्री महामृत्युंजय यंत्र :

यंत्रों में शक्ति सदा विराजमान रहती है जिसके कारण यंत्र शीघ्र ही अपने प्रभावों को पूर्णतः स्पष्ट कर देते हैं. ऎसा की एक यंत्र महामृत्यंजय यंत्र है. महामृत्यंजय यंत्र अकाल मृत्यु के भय को दूर करता है तथा रोग को दूर करके व्यक्ति को दिर्घायु का वरदान देता है. इस यंत्र के माध्यम से भगवान शंकर की स्तुति की जाती है, रोगों की निवृत्ति के लिये एवं दीर्घायु की कामना के लिये यह यंत्र उपयोग में लाया जाता है.

शास्त्रों में महामृत्युंजय यंत्र को उच्च स्थान प्राप्त है. यह यंत्र अभेद्य कवच के समान कार्य करता है. अकालमृत्यु से मुक्ति दिलाता यह यंत्र बीमारी में अथवा दुर्घटना इत्यादि से बचाव करता है. महामृत्यंजय यंत्र समस्त प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक कष्टों का नाश करता है. इस यंत्र की पूजा करने के विशेष फल मिलते हैं तथा कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है.

लाभ :

  • महामृत्युंजय यंत्र से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
  • यह यंत्र रोगों का नाश कर व्यक्ति को दीर्घायु का वरदान देता है।
  • इस यंत्र के माध्यम से मनुष्य के समस्त प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक कष्टों का नाश होता है।
  • महामृत्युंजय यंत्र मनुष्य को धन, यश, बुद्धि, विद्या आदि प्रदान करता है।

महामृत्युंजय यंत्र स्थापना विधि :

आमतौर पर श्रावण मास में इस यंत्र को स्थापित करना शुभ फलदायी होता है लेकिन आप इसे किसी भी  सोमवार को स्थापित कर सकते हैं। स्थापना से पूर्व प्रातकाल स्नानादि के पश्चात पूजास्थल पर शिव प्रतिमा के समक्ष इस यंत्र को स्थापित करना चाहिए। फिर यंत्र के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए और यंत्र का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए। तत्पश्चात यंत्र पर चंदन, सफेद पुष्प और सफेद भोग अर्पित करना चाहिए। इसके पश्चात महामृत्युजंय मंत्र  का 11 या 21 बार जाप करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव की आराधना करते हुए यंत्र को यथास्थान स्थापित कर देना चाहिए। इस यंत्र को स्थापित करने के पश्चात इसे नियमित रूप से धोकर इसकी पूजा करें ताकि इसका प्रभाव कम ना हो। यदि आप इस यंत्र को बटुए या गले में धारण करते हैं तो स्नानादि के बाद अपने हाथ में यंत्र को लेकर उपरोक्त विधिपूर्वक इसका पूजन करें।

महामृत्युजंय यंत्र का बीज मंत्र :

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः 

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् 

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् 

ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ 

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