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गार्नेट ब्रेसलेट
गार्नेट ब्रेसलेट
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गार्नेट ब्रेसलेट :
गार्नेट सूर्य का उपरत्न माना गया है। इसे माणिक की जगह पहना जाता है। यह सूर्य का उपरत्न होने के साथ बहुत प्रभावशाली भी है। इसे हिन्दी में याकूब और रक्तमणि के नाम से भी जाना जाता। यह लाल रंग का कठोर होता है। रत्न शास्त्र के अनुसार, जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य कमजोर या नीच राशि में उपस्थित होता है, उसे गहरे लाल रंग का गार्नेट धारण करना चाहिए, क्योंकि गार्नेट रत्न धारण करने से कुंडली में सूर्य ग्रह को प्रबलता मिलती है।
गार्नेट पहनने से आंतरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है, जो भी व्यक्ति इस रत्न को धारण करता है वो आत्मविश्वास से भरपूर रहता है।
गार्नेट पहनने से रक्त संबंधी विकार दूर होते हैं। रक्त शुद्ध करके ये शरीर को ऊर्जावान, कांतिवान बनाए रखता है। इसलिए त्वचा संबंधी रोगों में भी गार्नेट पहनने की सलाह दी जाती है।
इसके अलावा व्यापारियों को कम से कम 10 ग्राम का गार्नेट अपने कार्यस्थल की तिजोरी में रखना चाहिए। शेयर मार्केट, सत्ता, लाटरी में सफलता के लिए गार्नेट पहना जाता है।
मान्यता है कि गार्नेट पहनने वाले का आकर्षण प्रभाव जबर्दस्त हो जाता है। लव और रिलेशनशिप को बूस्ट करने का काम भी करता है गारनेट। ये व्यक्ति के औरा को क्लीन करता है। इससे अनेक प्रकार के रोग स्वत: दूर हो जाते हैं।
जो लोग ज्यादातर टूर पर रहते हैं। टूरिंग जॉब करते हैं उन्हें गार्नेट पहनना चाहिए। यह ट्रेवलिंग के दौरान सुरक्षा करता है। गार्नेट उन लोगों को विशेषतौर पर पहनना चाहिए जिनके मन में अनजाना भय रहता है, जो हमेशा असुरक्षित महसूस करते हैं, जिनमें इनसिक्योरिटी की भावना रहती है।
गार्नेट रत्न धारण विधि :
गार्नेट रत्न को तांबे या सोने की धातु में जड़वाकर पहनना शुभ माना जाता है। यदि आप इसे धारण करना चाहते हैं तो शुक्ल पक्ष के रविवार का दिन आपके लिए सबसे अच्छा होगा। इस रत्न को अनामिका अँगुली में ताँबे में बनवाकर शुक्ल पक्ष के रविवार को प्रातः सवा दस बजे पहना जाता है। इसे धारण करने से पहले रविवार के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद इस रत्न को गाय के कच्चे दूध और गंगाजल के मिश्रण से शुद्ध करके पूजा-पाठ करने के बाद ही पहनें।
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